जय श्री मेरे राम
मंदिर
की अब लेके मांग
जोर
से बोलो जय श्री
राम
अब
हो के रहेगा ये
संग्राम
हर
ईंट पे लिख दो
जय श्री राम
रोके
कोई तो लो गर्दन
थाम
राम
राज्य का करो ऐलान
हाथ
में भाला हो या
बाण
दुश्मन
का न बचे निशान
दूजे
धर्म के लोग हराम
बस कर दो उनका
काम तमाम
हर
योगी अब परशुराम
ले
लो कुर्सी और बनो प्रधान
पर मेरे राम का
क्यों लेते हो नाम
ये पाप न धुलेंगे
चारो धाम
स्वयं
कहेंगे मेरे राम
ना
"तुम" मुझको करो प्रणाम
करते
हो तुम ऐसे काम
लगते
हो रावण संतान
कितने
भिन्न है अपने राम
लगते
नहीं है एक समान
कृपा
सिंधु थे मेरे राम
और आपके मांगे किसकी
जान ?
कबीर
तुलसी उन्हें करे प्रणाम
राम
कथा का देते ज्ञान
पल में छोड़ा राजा
का मान
सौतेली
माता का सम्मान
क्यों
छोड़ा अपना जन्मस्थान ?
क्यों
ना किया युद्ध ऐलान
?
वचन
पूर्ति में दिया बलिदान
वनवासित
हो गए मेरे राम
केवट
शबरी एक सामान
भेद
न वानर ना इंसान
दुश्मन
का भी हो सम्मान
लक्ष्मण
को वो देते ज्ञान
हर
मर्यादा का सम्मान
इसीलिए
पुरषोत्तम मेरे राम
आपको
कब समझेंगे मेरे राम
ये ना इतना आसान
काम
पहल
द्वेष को लगे लगाम
क्रोध
को दो थोड़ा विश्राम
व्यर्थ
है मंदिर की ये मांग
जब तक ना समझे
मेरे राम
मंदिर
बांधो या गुरुधाम
गिरा
के मस्जिद बनो बलवान
पर ना करना दुष्टों
का काम
लगा
के नारे जय श्री
राम
जब
दिल में बस जाए
मेरे राम
तब
कहलाओ तुम हनुमान
परम
भक्ति का वो है
मान
तब तुम कहना जय
श्री राम
जब
तुम पाओगे मेरे राम
लब पर
होगी एक मुस्कान
शांत
चित्त से हम करे
प्रणाम
नारा
नहीं पर भजन समान
रघुपति
राघव राजा राम
पतित
पावन सीता राम.